मेरी जान के दुश्मन
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Формат
Мягкая обложка
Язык
Хинди
Опубликовано
Mar 1, 1981
Издатель
Subodh Pocket Books
Описание
सुरेन्द्र मोहन पाठक की कहानी में पुलिस इन्स्पेक्टर सिन्हा की जद्दोजहद को बखूबी दर्शाया गया है। वह एक ऐसे समाज में काम कर रहे हैं जहाँ अपराधों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, और सबका ध्यान पुलिस पर ही केंद्रित है। लोग पुलिस को जिम्मेदार ठहराने में मशगूल हैं, जबकि इसके पीछे की सच्चाई और भी जटिल है।
सिन्हा एक ईमानदार अधिकारी हैं, जो अपनी ड्यूटी के प्रति समर्पित हैं, लेकिन उन्हें अपने ही विभाग में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बढ़ते अपराधों का समाधान निकालने के लिए, वह हर संभव प्रयास करते हैं। उनकी सोच और कार्यशैली से निराश होकर, कुछ लोग उनकी जान के दुश्मन बन जाते हैं। यह संघर्ष आगे बढ़ता है और पाठक को एक ऐसे रोमांचक सफर पर ले जाता है, जहाँ न्याय और अन्याय की सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं।
यह कहानी न केवल अपराध और पुलिस के बीच के संबंधों पर प्रकाश डालती है, बल्कि समाज की वास्तविकता को भी सामने लाती है। पाठक को न केवल एक थ्रिलर का अनुभव होता है, बल्कि यह भी समझ में आता है कि एक इन्सान के प्रयासों में कितनी गहराई और संघर्ष छिपा होता है। सिन्हा के साहस और दृढ़ निश्चय की यह कहानी हर पाठक को प्रभावित करती है।
सिन्हा एक ईमानदार अधिकारी हैं, जो अपनी ड्यूटी के प्रति समर्पित हैं, लेकिन उन्हें अपने ही विभाग में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बढ़ते अपराधों का समाधान निकालने के लिए, वह हर संभव प्रयास करते हैं। उनकी सोच और कार्यशैली से निराश होकर, कुछ लोग उनकी जान के दुश्मन बन जाते हैं। यह संघर्ष आगे बढ़ता है और पाठक को एक ऐसे रोमांचक सफर पर ले जाता है, जहाँ न्याय और अन्याय की सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं।
यह कहानी न केवल अपराध और पुलिस के बीच के संबंधों पर प्रकाश डालती है, बल्कि समाज की वास्तविकता को भी सामने लाती है। पाठक को न केवल एक थ्रिलर का अनुभव होता है, बल्कि यह भी समझ में आता है कि एक इन्सान के प्रयासों में कितनी गहराई और संघर्ष छिपा होता है। सिन्हा के साहस और दृढ़ निश्चय की यह कहानी हर पाठक को प्रभावित करती है।
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